टूटा ना अवधान,
उस, काल कोठरी में,
कैद हो चला, एक दिन और!
बिन व्यवधान!
और एक दिन....
धारा है अवधान,
मौन धरा नें,
पल, अनगिनत बह चला,
अनवरत, रात ढ़ली, दिवस ढ़ला,
हुआ, सांझ का अवसान,
बिन व्यवधान!
और एक दिन....
टूटा ना अवधान,
कालचक्र का,
कहीं सृजन, कहीं संहार,
कहीं लूटकर, किसी का श्रृंगार,
वक्त, हो चला अन्तर्धान,
बिन व्यवधान!
और एक दिन....
कैसा ये अवधान,
वही है धरा,
बदला, बस रूप जरा,
छाँव कहीं, कहीं बस धूप भरा,
क्षण-क्षण, हैं अ-समान,
बिन व्यवधान!
और एक दिन....
टूटा ना अवधान,
उस, काल कोठरी में,
कैद हो चला, एक दिन और!
बिन व्यवधान!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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अवधान का अर्थ:
3. ध्यान । सावधानी । चौकसी ।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 16 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय दी
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय अनुराधा जी।
Deleteबढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी।
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