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Sunday, 11 October 2020

जिद्दी जमीं

खोकर नमीं, कभी जम सी जाती है!
जिद्दी जमीं!

खुद में छिपाए, प्राण कितने!
पिरोए, जीवन के, अवधान कितने,
जीवन्त रखते, अरमान कितने!
जरा सा, थम सी जाती है,
जिद्दी जमीं!

भला, वो बीज, सोता है कब!
वो गगण फिर, रक्ताभ होता है जब,
अंकुरित होते हैं, प्राण कितने!
फिर से, विहँस पड़ती है,
जिद्दी जमीं!

निष्फल, रहता नित कामरत!
सर पे धूप ढ़ोता, जूझता अनवरत,
नित लांघता, व्यवधान कितने!
पुन:श्च, गोद भर जाती है,
जिद्दी जमीं!

खोकर नमीं, कभी जम सी जाती है!
जिद्दी जमीं!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday, 16 February 2020

अवधान

टूटा ना अवधान,
उस, काल कोठरी में,
कैद हो चला, एक दिन और!
बिन व्यवधान!

और एक दिन....

धारा है अवधान,
मौन धरा नें, 
पल, अनगिनत बह चला,
अनवरत, रात ढ़ली, दिवस ढ़ला,
हुआ, सांझ का अवसान,
बिन व्यवधान!

और एक दिन....

टूटा ना अवधान,
कालचक्र का,
कहीं सृजन, कहीं संहार,
कहीं लूटकर, किसी का श्रृंगार,
वक्त, हो चला अन्तर्धान,
बिन व्यवधान!

और एक दिन....

कैसा ये अवधान,
वही है धरा,
बदला, बस रूप जरा,
छाँव कहीं, कहीं बस धूप भरा,
क्षण-क्षण, हैं अ-समान,
बिन व्यवधान!

और एक दिन....

टूटा ना अवधान,
उस, काल कोठरी में,
कैद हो चला, एक दिन और!
बिन व्यवधान!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
 (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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अवधान का अर्थ:
1. मन का योग । चित्त का लगाव । मनोयोग ।
2. चित की वृत्ति का निरोध करके उसे एक ओर लगाना । समाधि । 
3. ध्यान । सावधानी । चौकसी ।