छुपी है क्यूँ रौशनी, रात की आगोश में!
विवश बड़ा, हुआ दिवस का पहर,
जागते वो निशाचर, वो काँपते चराचर!
भान, प्रमान का अब कहाँ?
दिवा, खो चली यहाँ,
वो दिनकर, दीन क्यूँ है बना?
निशा, रही रुकी,
उस निशीथिनी की गोद में!
छुपी है क्यूँ रौशनी, रात की आगोश में!
खिली हुई धूप में, व्याप्त है अंधेरा,
पूछ लूँ क्षितिज से, कहाँ छुपा है सवेरा!
अब तो, भोर भी हो चला,
चाँद, कहीं खो चला,
तमस, अब तलक ना ढ़ला!
याम, क्यूँ छुपी?
उस यामिनी की गोद में!
छुपी है क्यूँ रौशनी, रात की आगोश में!
व्याप्त है, रात का, वो दुरूह पल,
तू ही बता, क्यूँ ये रात, कर रहा है छल!
अब तो, गुम हुई है चाँदनी,
गई, कहाँ वो रौशनी,
मार्तण्ड, मंद क्यूँ हो चला!
विभा, क्यूँ छुपी?
उस विभावरी की गोद में?
छुपी है क्यूँ रौशनी, रात की आगोश में!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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शब्दार्थ:---------
प्रमान : दिन, विभा, याम
मार्तण्ड: सूर्य
निशीथिनी: रात, निशा, यामिनी
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 24 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार दी।
ReplyDeleteखिली हुई धूप में, व्याप्त है अंधेरा,
ReplyDeleteपूछ लूँ क्षितिज से, कहाँ छुपा है सवेरा!
अब तो, भोर भी हो चला,
चाँद, कहीं खो चला,
तमस, अब तलक ना ढ़ला!
याम, क्यूँ छुपी?
उस यामिनी की गोद में!
अत्यन्त सुन्दर भावाभिव्यक्ति ।
आभारी हूँ आदरणीया मीना भारद्वाज जी।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " अतिथि देवो भवः " (चर्चा अंक - 3622) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कामिनी जी।
Deleteछुपी है क्यूँ रौशनी, रात की आगोश में!
ReplyDeleteवाह!!!
प्रथम पंक्ति में ही पूरी रचना का सार झलकता है
बहुत ही लाजवाब सृजन
वाह वाह....
शुभ प्रभात व शुक्रिया आदरणीया सुधा देवरानी जी ।
Deleteव्याप्त है, रात का, वो दुरूह पल,
ReplyDeleteतू ही बता, क्यूँ ये रात, कर रहा है छल!
अब तो, गुम हुई है चाँदनी,
गई, कहाँ वो रौशनी,
मार्तण्ड, मंद क्यूँ हो चला!
विभा, क्यूँ छुपी?
उस विभावरी की गोद में?
आदरणीया रेणु जी, रचना की सराहना हेतु हृदयतल से आभार । पुनः स्वागत है आपका।
DeleteWater Hack Burns 2 lb of Fat OVERNIGHT
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