सो जाऊँ कैसे, मैं, करवटें लेकर!
पराई पीड़ सोई, एक करवट,
दूजे करवट, पीड़ पर्वत,
व्यथा के अथाह सागर, दोनो तरफ,
विलग हो पाऊँ कैसे!
सो जाऊँ कैसे?
सत्य से परे, मुँह फेर कर!
देखूँ ना कैसे, मैं औरों के गम!
अंकुश लगाऊँ कैसे, इन संवेदनाओं पर,
वश धारूँ कैसे, मन की वेदनाओं पर,
जड़-चेतन बनूँ मैं कैसे?
रख पाऊँ कैसे, चिंतन-विहीन खुद को,
रह जाऊँ कैसे, सर्वथा अलग!
सो जाऊँ, कैसे!
सत्य से परे, करवटें लेकर!
तकता हूँ गगन, जागा हुआ मैं!
जागी है वेदना, एक करवट,
दूजे करवट, पीड़ पर्वत,
नीर निर्झर, नैनों से बहे, दोनों तरफ,
अचेतन हो जाऊँ कैसे!
सो जाऊँ कैसे?
सत्य से परे, मुँह फेर कर!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteपत्रकारिता दिवस की बधाई हो।
पत्रकारिता दिवस की हार्दिक बधाई आपको भी आदरणीय मयंक जी।
Deleteसो जाऊँ कैसे?
ReplyDeleteसत्य से परे, मुँह फेर कर! सामयिक सरोकारों पर कवि के सार्थक प्रतिक्रियात्मक स्वर।
आभार आदरणीय विश्वमोहन जी।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 30 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीया
Deleteखूब लिखा है आपने,
ReplyDeleteसो जाऊँ कैसे?
सत्य से परे, मुँह फेर कर!
💐💐
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।
Deleteव्यथा के अथाह सागर दोनों तरफ। वाह!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
शुक्रिया आदरणीय नीतीश जी।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 10 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteसुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय
Deleteवाह!पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूब!
ReplyDeleteसो जाऊँ कैसे सत्य से परे ,
मुँह फेर कर ...वाह!!
मुक्तकंठ प्रशंसा व सदैव सहयोग हेतु आभारी हूँ आदरणीया शुभा जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
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