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Saturday, 30 May 2020

करवट

सो जाऊँ कैसे, मैं, करवटें लेकर!
पराई पीड़ सोई, एक करवट,
दूजे करवट, पीड़ पर्वत,
व्यथा के अथाह सागर, दोनो तरफ,
विलग हो पाऊँ कैसे!
सो जाऊँ कैसे?
सत्य से परे, मुँह फेर कर!

देखूँ ना कैसे, मैं औरों के गम!
अंकुश लगाऊँ कैसे, इन संवेदनाओं पर,
वश धारूँ कैसे, मन की वेदनाओं पर,
जड़-चेतन बनूँ मैं कैसे?
रख पाऊँ कैसे, चिंतन-विहीन खुद को,
रह जाऊँ कैसे, सर्वथा अलग!
सो जाऊँ, कैसे!
सत्य से परे, करवटें लेकर!

तकता हूँ गगन, जागा हुआ मैं!
जागी है वेदना, एक करवट,
दूजे करवट, पीड़ पर्वत,
नीर निर्झर, नैनों से बहे, दोनों तरफ,
अचेतन हो जाऊँ कैसे!
सो जाऊँ कैसे?
सत्य से परे, मुँह फेर कर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)