देखा ना तुमको, जाना ना तुमको!
संभव था, पा लेता, इक अधूरा सा अनुभव!
गर एहसासों में, भर पाता तुमको!
पर, शायद, शंकाओं के बंद घेरों में थे तुम!
या अपने होकर भी, गैरों में थे हम!
कदाचित, सर्वदा सारे अधिकारों से वंचित!
जाने क्यूँ, रहा फिर भी चिंतित!
कोशिश है, बस यूँ , गढ़ लूँ इक छवि तेरी!
चुन लूँ उधेर-बुन, बुन लूँ यूँ तुमको!
कर लूँ बातें, समझाऊँ क्यूँ होती है बरसातें?
किंचित सूनी सी हैं, क्यूँ मेरी रातें!
छवि में, मौन रहे तुम, "वो कौन" रहे तुम!
कह भी पाती, क्या वो छवि मुझको?
शंकाकुल मन तेरा, दीपक तले जगा अंधेरा,
बुझ-बुझ जलता, विह्वल मन मेरा!
उभरेंगे अक्षर, कभी तो उन दस्तावेजों पर!
पलट कर पन्ने, तुम पढ़ना उनको,
बीते हर किस्से का, उपांतसाक्षी होऊँगा मैं,
जागूंगा तुममें, फिर ना सोऊंगा मैं!
यूँ भी उपांतसाक्षी हूँ मैं, हर शंकाओं का!
जाने अंजाने, उन दुविधाओं का,
उकेरे हैं जहाँ, एकाकी पलों के अभिलेख,
बिखेरे हैं जहाँ, अनगढ़े से आलेख!
पर मौन रहे तुम, सर्वदा "वो कौन" रहे तुम!
भावहीन रहे तुम, विलीन रहे तुम!
संभव था, ले पाता, वो अधूरा सा अनुभव!
गर सुन पाता, तेरे धड़कन की रव!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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उपांतसाक्षी - वह साक्षी या गवाह जिसने किसी दस्तावेज़ के उपांत या हाशिये पर हस्ताक्षर किया हो या अँगूठे का निशान लगाया हो।
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी। शुक्रिया।
Deleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मयंक महोदय।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (8-9 -2020 ) को "ॐ भूर्भुवः स्वः" (चर्चा अंक 3818) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
आभार आदरणीया कामिनी जी।
Deleteबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति मन को छूती हुई।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार आदरणीया अनीता जी
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