कितनी बातों के मध्य, बात रही,
दिल के मध्य, कहीं!कह भी पाता, तो क्या कह पाता!
ये सागर, कितना बह पाता!
लहर-लहर बन, खुद ही टकराता,
खुद को बिखराता,
अनकही सी, हर जज्बात रही,
दिल के मध्य, कहीं!
कितनी बातों के मध्य, बात रही,
दिल के मध्य, कहीं!कल्पना कहें, या, कहें सपना उसे!
अब कह दें कैसे, बेगाना उसे,
अनकही वो बातें, वो ही सौगातें,
दिन और ये रातें,
संग मेरे, मेरी तन्हाई में गाते,
दिल के मध्य, कहीं!
कितनी बातों के मध्य, बात रही,
दिल के मध्य, कहीं!अब जो ये शेष बचे हैं, संग मेरे हैं,
उन बातों में, भीगे रंग तेरे हैं,
फीके, ये लेकिन, शाम-सवेरे हैं,
वो यादों के रंग,
रहते हैं जो, अब मेरे ही संग,
दिल के मध्य, कहीं!
कितनी बातों के मध्य, बात रही,
दिल के मध्य, कहीं!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत सुंदर कविता।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (08 -11-2021 ) को 'अंजुमन पे आज, सारा तन्त्र है टिका हुआ' (चर्चा अंक 4241) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
हार्दिक आभार ....
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 09 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
कल्पना कहें, या, कहें सपना उसे!
ReplyDeleteअब कह दें कैसे, बेगाना उसे,
अनकही वो बातें, वो ही सौगातें,
दिन और ये रातें,
संग मेरे, मेरी तन्हाई में गाते,
दिल के मध्य, कहीं!
भावनाओं से ओतप्रोत बहुत ही मार्मिक रचना
हार्दिक आभार ....
Deleteवाह बेहतरीन रचना मर्म को भेदती हुई
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
Delete