Tuesday 30 November 2021

जीवंतता

चाहा, रोक लूं पवन को, शाख बन कर,
रख लूं, यूं ही कहीं, हाथ धर कर!

पर वो, इक क्षणिक बुलबुला,
चंचल चित्त, चंचला,
निराश मन, पर छोड़े कहां, आस मन,
न तोड़े, कल्पना, 
न चाहे, इक पल भूलना,
न देखे, रात-दिन!
चाहा रोक लूं, पवन को, शाख बन कर!

अनन्त राह, अलग ही, प्रवाह,
इक, अलग ही चाह,
निरंतर, इक दिशा लपक जाए पवन,
ना करे, परवाह,
ना ही धरे, वो बाँह कोई,
खुद में ही, खोई!
कैसे रोक लूं, पवन को, शाख बन कर!

यूं, गति ही, उसकी जीवंतता,
गति, एक विवशता,
जड़ जाए, जड़ता में, कैसे वो जीवंत!
एक कोरी कल्पना,
पलकों में, ये पल बांधना,
बस, एक सपना!
कैसे रोक लूं, पवन को, हाथ धर कर!

चाहा रोक लूं, पवन को, शाख बन कर,
रख लूं, यूं ही कहीं, हाथ धर कर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

6 comments:

  1. यूं, गति ही, उसकी जीवंतता,
    गति, एक विवशता,
    जड़ जाए, जड़ता में, कैसे वो जीवंत!
    एक कोरी कल्पना,
    पलकों में, ये पल बांधना,
    बस, एक सपना!
    कैसे रोक लूं, पवन को, हाथ धर कर... अतिसुंदर

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  2. बहुत खूबसूरत रचना,अति सुन्दर 👌👌

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  3. अनन्त राह, अलग ही, प्रवाह,
    इक, अलग ही चाह,
    निरंतर, इक दिशा लपक जाए पवन,
    ना करे, परवाह,
    ना ही धरे, वो बाँह कोई,
    खुद में ही, खोई!
    कैसे रोक लूं, पवन को, शाख बन कर!.. बहुत सुंदर सराहनीय सृजन ।

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