Friday, 12 November 2021

छाँव

तनिक छाँव, कहीं मिल जाए,
तो, जरा रुक जाऊँ!

यूँ तो, वृक्ष-विहीन इस पथ पर,
तप्त किरण के रथ पर,
तारों के उस पार, तन्हा मुझको जाना है,
इक साँस, कहीं मिल जाए,
दो पल, रुक जाऊँ!

काश ! कहीं, इक पीपल होता,
उन छाँवों में सो लेता,
पांवों के  छालों को, राहत के पल देता,
इक छाँव, कहीं मिल जाए,
दो पल, रुक जाऊँ!

वो कौन यहाँ जो छू जाए मन,
कौन सुने ये धड़कन,
बंजर से वीरानों में, फलते आस कहाँ,
इक आस, कहीं मिल जाए,
दो पल, रुक जाऊँ!

पथ पर, कुछ बरगद बोने दो,
पथ प्रशस्त होने दो,
चेतना के पथ पर, पलती हो संवेदना,
इक भाव, कहीं जग जाए,
दो पल, रुक जाऊँ!

तनिक छाँव, कहीं मिल जाए,
तो, जरा रुक जाऊँ!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

13 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 12 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. बहुत ही गहरे भावों को बयां करती बहुत ही सुंदर रचना

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  3. बरगद और पीपल की सी छाँव मिले जीवन सफर मिल जाये जीवन सफर में तो बात ही क्या...
    पथ प्रशस्त करने दो
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर।

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  4. सांस, छांव, आस, भाव जब एक ही प्रेमी से जुड़े हों तो जीवनरूपी सफ़र आंनदमय हो जाता है।
    बहुत खूब।

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  5. पथ पर, कुछ बरगद बोने दो,
    पथ प्रशस्त होने दो,
    चेतना के पथ पर, पलती हो संवेदना,
    इक भाव, कहीं जग जाए,
    दो पल, रुक जाऊँ!..बहुत ही सारगर्भित रचना ।

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  6. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13.11.21 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा|
    धन्यवाद

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