कोरे, ये कागज सारे कौन रंगे!
बीते कई दिन, बस यूँ ही, अनमने से,
अर्ध-स्वप्न सी, बीती रातें कई,
मलता रहा नैन, बस यूँ ही, जागा-जागा,
दूर, जीवन कहीं, रंगों से भागा,
फीकी सी, सब उमंगें!
ना गिन पाऊँ, अनमनस्क, मन की तरंगें,
कोरे, ये कागज सारे कौन रंगे!
बही प्रतिकूल, यूँ ही, ये चंचल हवाएँ,
छू ले, कभी, यूँ नाहक जगाए,
अनमनस्क लग रहे, नदी के ये किनारे,
दूर, बहते रहे, अनवरत वो धारे,
बहा गई, सारी उमंगे!
ना गिन पाऊँ, अनमनस्क, मन की तरंगें,
कोरे, ये कागज सारे कौन रंगे!
शायद, बहने लगे, पवन हौले-हौले,
मन को मेरे, कोई यूँ ही छू ले!
शून्य क्यूँ है इतना, कोई आए टटोले!
दूर, क्षितिज पर, फिर से बिखेरे,
वो ही, सतरंगी उमंगे!
ना गिन पाऊँ, अनमनस्क, मन की तरंगें,
कोरे, ये कागज सारे कौन रंगे!
अतिसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteअतिसुंदर रचना श्रीमान जी के द्वारा । जीबन के मन मे तरंग भरने वाली रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 24 जुलाई 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteनिरव मन की व्याकुलता को परिलक्षित करती बहुत ही सुंदर रचना 🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबीते कई दिन, बस यूँ ही, अनमने से,
ReplyDeleteअर्ध-स्वप्न सी, बीती रातें कई,
मलता रहा नैन, बस यूँ ही, जागा-जागा,
दूर, जीवन कहीं, रंगों से भागा
फीकी सी, सब उमंगें!
बहुत सुंदर, भावनाओं में बहती हुई पंक्तियां
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteशायद, बहने लगे, पवन हौले-हौले,
ReplyDeleteमन को मेरे, कोई यूँ ही छू ले!
शून्य क्यूँ है इतना, कोई आए टटोले!
दूर, क्षितिज पर, फिर से बिखेरे,
वो ही, सतरंगी उमंगे!
..भावपूर्ण अहसास की सुंदर अभिव्यक्ति ।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
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