एकाकी खुश हूँ, मैं, एकाकी ही भला....
गम, जो दे जाते हैं, वो मन के बंधन,
क्यूँ, बांध रहे, मुझसे हर क्षण,
ये गीत, न वो गाएंगे,
सर्वदा, मन को न तेरे बहलाएंगे,
न रखना, कोई गिला!
एकाकी खुश हूँ, मैं, एकाकी ही भला....
गम न, इक और, ले पाऊंगा सर्वथा,
रह न पाऊंगा, यूं संग सर्वदा,
न रख, यादों में कहीं,
रखना, पर, बीती बातों में कहीं,
जैसे कोई, कहीं मिला!
एकाकी खुश हूँ, मैं, एकाकी ही भला....
क्यूं ठहर जाऊं, आंगन में किसी के,
क्यूं बना लूं, घर इक कहीं पे,
रेत जैसे हैं ख्वाब ये,
प्यास नजरों को हो, गर, दो घूंट,
अपनी, आंसू के पिला!
एकाकी खुश हूँ, मैं, एकाकी ही भला....
हो बेहतर, रख ले मन पे एक पत्थर,
मत मांग, प्रश्नों के कोई उत्तर,
जो, हल न हो पाएंगे,
वो अन्तर्मन को और बींध जाएंगे,
यूं होगा, किसका भला!
एकाकी खुश हूँ, मैं, एकाकी ही भला....
उड़ा मत, आसमां पर, पंछी चाह के,
कल, रख न पाओगे बांध के,
वो, छल ही जाएंगे,
टूटे बांध जो, वो कल बंध न पाएंगे,
यूं होगा, खुद से गिला!
एकाकी खुश हूँ, मैं, एकाकी ही भला....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
टूटे मन से निकले भाव ....
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteभावपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteसुन्दर भावों की अभिव्यक्ति ||
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय
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