किनारों से, गुजर रही है ये उमर!
बहाव सारे, बन गए किनारे,
ठहराव में हमारे,
रुक गया, ये कहकशां,
बनकर रह-गुजर!
उनको छू कर,
किनारों से, गुजर रही है ये उमर!
रश्क करता, मुझ पे दर्पण,
भर के आलिंगन,
निहारकर, पल दो पल,
यूं जाता है ठहर!
उनको छू कर,
किनारों से, गुजर रही है ये उमर!
जज्बात में, इक साथ वो,
अनकही बात वो,
लिख दूं, कैसे, सार वो,
यूं ही कागजों पर!
उनको छू कर,
किनारों से, गुजर रही है ये उमर!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
At Kolkata....
अतिसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-11-22} को "उम्र को जाना है"(चर्चा अंक 4622) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
आभार
Deleteशादी के २९वे सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं आपको, परमात्मा आप दोनों की जोड़ी बनाएं रखें 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया कामिनी जी
Deleteसालगीरह की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया ज्योति जी
Deleteहार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया कविता जी
Deleteअति सुन्दर आपको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 💐💐
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया अभिलाषा जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर, ढेरों शुभकामनाएं
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीया भारती जी
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