Tuesday, 6 December 2022

बहाव में (१५०० वां पोस्ट)


उनकी ही बहाव में, बह गए हम,
उस क्षण, वहीं रह गए हम!

यूं थे भंवर कितने, बहाव में,
खुश थे कितने, हम उसी ठहराव में,
दर्द सारे, सह गए हम,
संग बहाव में, बह गए हम!

आसां कहां, यूं था संभलना,
उन्हीं अट-खेलियों संग, यूं भटकना,
यूं भंवर में, बहे हम,
उसी बहाव में, रह गए हम!

निष्प्रभावी से रहे यत्न सारे,
बन चले, ये बहाव ही दोनो किनारे,
विवश, प्रवाह में हम,
उसी चाह में, बह गए हम!

अब तो बस, है चाह इतनी,
यूं‌‌ बहते रहे, शेष है प्रवाह जितनी,
वश में, बहाव के हम,
बह जाएं, उसी राह में हम!

उनकी ही बहाव में, बह गए हम,
उस क्षण, वहीं रह गए हम!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

2 comments:

  1. जीवन में समय की धारा के साथ बहना ही इन्सान की नियति है किसी अपने ।साथ बना रहे तो इस धारा के साथ बहने का आनन्द ही अनूठा होता है। रचनाओं के 1700के जादुई
    आँकड़े को छूने के लिए ढेरों शुभकामनाएं और बधाई स्वीकार करें आदरनीय पुरुषोत्तम जी।आपकी कलम का प्रवाह यूँ ही बना रहे यही कामना है 🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. कोटिशः नमन और हृदयतल से आभार आदरणीया रेणु जी।।।।

      Delete