Saturday, 17 December 2022

लम्हातें

तुम थे, उस तरफ,
और इस तरफ थी, बस यादें तेरी,
यूं सफर में, कुछ कटती रही,
लम्हातें मेरी!

यूं तो संग था, एक टुकड़ा आकाश,
एक तन्हा काश,
और, ताश के घर कटती रही,
लम्हातें मेरी!

और ये मन, जाए कभी उस तरफ,
और, इस तरफ,
राह तकती, रह जाए अकेली,
लम्हातें मेरी!

तस्वीरें कोई, इन दीवारों पर नहीं,
लगे वो है यहीं,
खींच लाती है यूं पास तुमको,
लम्हातें मेरी!

खुश्बू सी, अब भी आती है सदा,
कहीं तुम जुदा,
यूं गुजरती है, तुम्हारे संग ही,
लम्हातें मेरी!

उधर, जाने किधर,
गुम हमसे वो राहें, न जाने किधर,
ले ही आई, पर पास तुमको,
लम्हातें मेरी!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

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