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Saturday, 9 April 2016

मिल सकी न इक नजर

सजल नैनों से सजदा करता रहा मैं उम्र भर...........!

बुनते रहे धागे उम्मीदों के युँ ही उम्र भर,
झुकते रहे सजदे में उनके, सर युुँ ही उम्र भर,
इक झलक पाने को बैठे रहे, सजदे किए युँ उम्र भर,
आह निकली! पर मिल सकी ना बस तुम्हारी इक नजर!

इबादत बन सकी ना, सजदों का वो सफर,
तन्हाईयों मे उम्र गुजरी, खामोशियों में लम्बा सफर,
पूछ लूँगा मैं खुदा से मिल गया वो मुझको अगर,
आह निकली! पर मिल सकी ना क्युँ तुम्हारी इक नजर!

अब सजल हो चले हैं नैनों के अधखुले डगर,
बह रहे अविरल जलधार, डूबे हुए अब शामो शहर,
इन सजल नैनों से सजदा, युँ ही करता रहा मैं उम्र भर,
आह निकली! पर मिल सकी ना बस तुम्हारी इक नजर!

Sunday, 27 December 2015

यादों के नीर

नैनों से जो छलक पड़े हैं,
विह्वल होकर जो सिसक पड़े है,
हैं तेरी यादों के वो नीर।

भावप्रवण जो फफक पड़े है,
अधरों पर जो बरस पड़े हैं
है तेरी यादों के वो जंजीर।

इन भावों से है गहराता सागर,
चखा है जिनको इन अधरों ने,
ये हैं तेरी प्यास के अधीर।

नीर नहीं ये, हैं नीरव अमृत,
पीता जाऊँ मैं इसको जीवनभर,
है जीवन तेरी आस का पीर।

चखा है अमृत अधरों ने पर,
अब भी बाकी प्यास हमारी,
नैनों से अविरल बह जाने को,
विह्वल नीर ने फिर कर ली तैयारी।