पिंजड़ा सामने खड़ा दिख रहा जीवन का,
कारावास इस जीवन की, तुझे खुद होगी झेलनी,
दीवार इस कारागार की, तू तोड़ नही पाएगा,
लिखा जो भी भाग्य में तेरे, सामने खुद ही आएगा।
व्यर्थ जाएगी युक्ति तेरी सारी मुक्ति की,
अवधि इस कारावास की, तुझको खुद पूरी है करनी,
कर्मों के अंबार लगे हैं, सामने जीवन के तेरे,
राहें भाग्य के रेखा की तेरी, कर्मो के रश्ते ही गुजरेगी।
मुँह फेर नही सकता तू जीवन के कर्मों से,
आजीवन ये कठोर कारावास सश्रम झेलनी है तुझको,
पुरस्कार या दंड? परिणाम यही पर तू पाएगा,
मुक्ति तुझको इस पिंजरे से, तेरा "जीवन कलश" दे पाएगा।