Monday, 21 March 2016

एक टुकड़ा नीरद

एक टुकड़ा नीरद, मीनकेतु सा छाया मन पर,
चातक मन बावरा उस नीरद का,
उमर घुमर वो नीरद वापस आता इस मन पर,
मनसिज सा बूँद बन बिखरा ये मन पर।

आज कहीं गुम वो मनसिज नीरद,
परछाई खोई कहीं बेचैन सी झील मे उसकी,
हलचल इस जल में आज कितनी,
सूख चुकी है शायद उस नीरद की बूँद भी?

नीरद आशाओं के कल फिर वापस आएंगे,
मन के झील पर ये फिर झिलमिलाएंगे,
तस्वीर नीरद की नई उभरेगी परछाई बन,
मनसिज नीरद की बूँदे फिर बरस जाएंगे मन पर।

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