मेहंदी सजाए, महावर पांवों मेें लगाए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
गीत कोई, फिर मैैं क्यूँ न गाऊँ?
क्यूँ न, रूठे प्रीत को मनाऊँ?
सूनी वो, मांग भरूं,
उन पांवों में, महावर मलूँ,
ये पायलिया जहाँ, रुनुर-झुनुर गाए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
फिजाओं से, क्यूँ न रंग मांग लूँ?
फलक से, रंग ही उतार लूँ!
रंग, उन्हें हजार दूँ,
अंग-अंग, महावर डाल दूँ,
सिंदूरी सांझ सी, वो भी मुस्कुराए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
कभी, पतझड़ों सा ये दिन लगे?
मन के, पात-पात यूँ झरे!
प्रीत को, पुकार लूँ,
उनसे बसंत का, उपहार लूँ,
डारे पांवों में महावर, हमें रिझाए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
मेहंदी सजाए, महावर पांवों मेें लगाए!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
गीत कोई, फिर मैैं क्यूँ न गाऊँ?
क्यूँ न, रूठे प्रीत को मनाऊँ?
सूनी वो, मांग भरूं,
उन पांवों में, महावर मलूँ,
ये पायलिया जहाँ, रुनुर-झुनुर गाए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
फिजाओं से, क्यूँ न रंग मांग लूँ?
फलक से, रंग ही उतार लूँ!
रंग, उन्हें हजार दूँ,
अंग-अंग, महावर डाल दूँ,
सिंदूरी सांझ सी, वो भी मुस्कुराए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
कभी, पतझड़ों सा ये दिन लगे?
मन के, पात-पात यूँ झरे!
प्रीत को, पुकार लूँ,
उनसे बसंत का, उपहार लूँ,
डारे पांवों में महावर, हमें रिझाए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
मेहंदी सजाए, महावर पांवों मेें लगाए!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)