मेहंदी सजाए, महावर पांवों मेें लगाए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
गीत कोई, फिर मैैं क्यूँ न गाऊँ?
क्यूँ न, रूठे प्रीत को मनाऊँ?
सूनी वो, मांग भरूं,
उन पांवों में, महावर मलूँ,
ये पायलिया जहाँ, रुनुर-झुनुर गाए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
फिजाओं से, क्यूँ न रंग मांग लूँ?
फलक से, रंग ही उतार लूँ!
रंग, उन्हें हजार दूँ,
अंग-अंग, महावर डाल दूँ,
सिंदूरी सांझ सी, वो भी मुस्कुराए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
कभी, पतझड़ों सा ये दिन लगे?
मन के, पात-पात यूँ झरे!
प्रीत को, पुकार लूँ,
उनसे बसंत का, उपहार लूँ,
डारे पांवों में महावर, हमें रिझाए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
मेहंदी सजाए, महावर पांवों मेें लगाए!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
गीत कोई, फिर मैैं क्यूँ न गाऊँ?
क्यूँ न, रूठे प्रीत को मनाऊँ?
सूनी वो, मांग भरूं,
उन पांवों में, महावर मलूँ,
ये पायलिया जहाँ, रुनुर-झुनुर गाए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
फिजाओं से, क्यूँ न रंग मांग लूँ?
फलक से, रंग ही उतार लूँ!
रंग, उन्हें हजार दूँ,
अंग-अंग, महावर डाल दूँ,
सिंदूरी सांझ सी, वो भी मुस्कुराए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
कभी, पतझड़ों सा ये दिन लगे?
मन के, पात-पात यूँ झरे!
प्रीत को, पुकार लूँ,
उनसे बसंत का, उपहार लूँ,
डारे पांवों में महावर, हमें रिझाए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
मेहंदी सजाए, महावर पांवों मेें लगाए!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 13 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय दी
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.11.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3519 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आभार आदरणीय विर्क जी।
Deleteबेहद प्यारी रचना।
ReplyDeleteप्रेम भाव बड़ी खूबसूरती से उकेरा है।
कुछ पंक्तियां आपकी नज़र 👉👉 ख़ाका
हार्दिक आभार आदरणीय रोहितास जी।
Deleteबहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुराधा जी
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