Showing posts with label उपहार. Show all posts
Showing posts with label उपहार. Show all posts

Wednesday, 13 November 2019

महावर

मेहंदी सजाए, महावर पांवों मेें लगाए!
हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!

गीत कोई, फिर मैैं क्यूँ न गाऊँ?
क्यूँ न, रूठे प्रीत को मनाऊँ?
सूनी वो, मांग भरूं,
उन पांवों में, महावर मलूँ,
ये पायलिया जहाँ, रुनुर-झुनुर गाए!

हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!

फिजाओं से, क्यूँ न रंग मांग लूँ?
फलक से, रंग ही उतार लूँ!
रंग, उन्हें हजार दूँ,
अंग-अंग, महावर डाल दूँ,
सिंदूरी सांझ सी, वो भी मुस्कुराए!

हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!

कभी, पतझड़ों सा ये दिन लगे?
मन के, पात-पात यूँ झरे!
प्रीत को, पुकार लूँ,
उनसे बसंत का, उपहार लूँ,
डारे पांवों में महावर, हमें रिझाए!

हर सांझ, यूँ कोई बुलाए!
मेहंदी सजाए, महावर पांवों मेें लगाए!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)

महावर


[सं-स्त्री.] - 1. शुभ अवसरों पर एड़ियों में लगाया जाने वाला गहरा चटकीला लाल रंग 

2. लाख से तैयार किया गया गहरा लाल रंग

Monday, 23 April 2018

माँ शारदे

हे, माँ शारदे! हे, माँ शारदे!
टूटे मन की इस वीणा को तू झंकार दे....
हे, माँ शारदे! हे, माँ शारदे!...

हम खोए हैं, अंधकार में,
अज्ञानता के, तिमिर संसार में,
तू ज्ञान की लौ जला,
भूला हुआ हूँ, राह कोई तो दिखा,
मन में, प्रकाश का मशाल दे,
मुझे ज्ञान की, उजियार का उपहार दे....
हे, माँ शारदे! हे, माँ शारदे!...

भटके हैं, स्वर इस कंठ में,
न ही सुर कोई, मेरे कुहुकंठ में,
तू सुर की नई सी तान दे,
बेस्वर सा हूँ, नया कोई इक गान दे,
तू स्वर का, मुझको ज्ञान दे,
सप्त सुरों की, अनुराग का उपहार दे....
हे, माँ शारदे! हे, माँ शारदे!...

जीवन के, इस आरोह में,
डूबे रहे हम, काम मद मोह में,
तू प्रखर, मेरे विवेक कर,
इक नव विहान का, अभिषेक कर,
तू नव उच्चारित, आरोह दे,
मेरे अवरोह में, सम्मान का उपहार दे.....
हे, माँ शारदे! हे, माँ शारदे!...

बुझता हुआ, इक दीप मैं,
प्रभाविहीन सा, इक संदीप मैं,
तू प्रभा को, प्रभात दे,
बुझते दिए की, लौ को प्रसार दे,
आलोकित सा विहान दे,
प्रभाविहीन मन में प्रभा का उपहार दे...
हे, माँ शारदे! हे, माँ शारदे!...

हे, माँ शारदे! हे, माँ शारदे!
टूटे मन की इस वीणा को तू झंकार दे....
हे, माँ शारदे! हे, माँ शारदे!...