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Sunday, 2 June 2019

देवदार

यशस्वी है, तपस्वी है देवदार,
एकाकी युगों से,
आच्छादित वन में कब से,
है देवों का वो हृदयेश.....

युगों-युगों, वीरान पहाड़ों पर,
फैला कर बाँहें,
लहराकर विशाल भुजाएँ,
कर रहा वो अभिषेक....

निर्विकार कितने ही वर्षों तक,
तप किए उसने,
चाह में आराध्य की अपने,
साध किए अतिरेक...

सम्मुख होकर गगन की ओर,
तकते हैं वो नभ,
आ जाएँ आराध्य शायद,
ख्वाब यही अधिशेष.....

अधूरे या, रूठे से होंगे ख्वाब,
उम्मीदें हैं शेष,
अब भी साँसें ले रही हैं,
अरमानों के अवशेष.....

यशस्वी है, तपस्वी है देवदार,
है साधना-रत,
युगों-युगों से है अनुरक्त,
कामनाएँ है अशेष.....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा