ऐ बेकरार दिल, खो रहा है क्यूँ तेरा करार?
क्यूँ तुझे हुआ है, फिर किसी से प्यार?
भीगी है ये, आँखें क्यूँ,
यूँ फैलाए है पर, आसमां पे क्यूँ,
ना तू, इस कदर मचल,
आ जा, जमीं पे साथ चल,
मुझ पे कर ले, ऐतबार!
ऐ बेकरार दिल, खो रहा है क्यूँ तेरा करार?
क्यूँ तुझे हुआ है, फिर किसी से प्यार?
परेशान हैं, इतना क्यूँ,
हैरान इस कदर, ये तेरे नैन क्यूँ,
गुम है, बातों में खनक,
अधूरी सी, आँखों में ललक,
तू कर, काबू में करार!
ऐ बेकरार दिल, खो रहा है क्यूँ तेरा करार?
क्यूँ तुझे हुआ है, फिर किसी से प्यार?
धड़कनें हैं, तेज क्यूँ,
अन्तरमन तेरा, निस्तेज क्यूँ,
लड़खड़ाए से कदम,
छूट जाए न, कहीं तेरा दम,
एक, तू ही है मेरा यार!
ऐ बेकरार दिल, खो रहा है क्यूँ तेरा करार?
क्यूँ तुझे हुआ है, फिर किसी से प्यार?
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
क्यूँ तुझे हुआ है, फिर किसी से प्यार?
भीगी है ये, आँखें क्यूँ,
यूँ फैलाए है पर, आसमां पे क्यूँ,
ना तू, इस कदर मचल,
आ जा, जमीं पे साथ चल,
मुझ पे कर ले, ऐतबार!
ऐ बेकरार दिल, खो रहा है क्यूँ तेरा करार?
क्यूँ तुझे हुआ है, फिर किसी से प्यार?
परेशान हैं, इतना क्यूँ,
हैरान इस कदर, ये तेरे नैन क्यूँ,
गुम है, बातों में खनक,
अधूरी सी, आँखों में ललक,
तू कर, काबू में करार!
ऐ बेकरार दिल, खो रहा है क्यूँ तेरा करार?
क्यूँ तुझे हुआ है, फिर किसी से प्यार?
धड़कनें हैं, तेज क्यूँ,
अन्तरमन तेरा, निस्तेज क्यूँ,
लड़खड़ाए से कदम,
छूट जाए न, कहीं तेरा दम,
एक, तू ही है मेरा यार!
ऐ बेकरार दिल, खो रहा है क्यूँ तेरा करार?
क्यूँ तुझे हुआ है, फिर किसी से प्यार?
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
बेहतरीन...
ReplyDeleteसादर...
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय दिग्विजय जी।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-02-2019) को "पाकिस्तान की ठुकाई करो" (चर्चा अंक-3253) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार मयंक जी।
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय अभिलाषा जी।
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय |आज कल काफ़ी आशिकाना अंदाज में क़लम चल रही है सर |
ReplyDeleteसादर
आभार आदरणीया । बिल्कुल सही कहा आपने। हमारे हलचल पाँच लिंकों के आनन्द का वर्तमान विषय ही "करार" है।
Deleteबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय कैलाश जी। आपका हार्दिक अभिनन्दन व स्वागत है मेरे ब्लॉग पर।
Deleteबासंती बयार सबके दिल का क़रार छीन रही है. मौसम का तकाज़ा है !
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय गोपेश जी।
Deleteअहसासो को बहुत ही संजीदगी से पिरोया है
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय संजय जी।
Deleteवाह बहुत खूब उम्दा रचना।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कुसुम जी।
Deleteबेहतरीन शब्दविन्यास... बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया सुधा देवरानी जी।
Delete