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Sunday, 11 September 2016

शहतूत के तले

हाॅ, कई वर्षों बाद मिले थे तुम उसी शहतूत के तले.....

अचानक ऑंखें बंद रखने को कहकर,
चुपके से तुमनें रख डाले थे इन हाथों पर,
शहतूत के चंद हरे-लाल-काले से फल,
कुछ खट्टे, कुछ मीठे, कुछ कच्चे से,
इक पल हुआ महसूस मानो, जैसे वो शहतूत न हों,
खट्टी-मीठी यादों को तुमने समेटकर,
सुुुुसुप्त हृदय को जगाने की कोशिश की हो तुमने।

हाॅ, कई वर्षों बाद मिले थे तुम उसी शहतूत के तले....

शहतूत के तले ही तुम मिले थे पहली बार,
मीठे शहतूत खाकर ही धड़के थे इस हृदय के तार,
वो कच्ची खट्टी शहतूत जो पसन्द थी तुम्हें बेहद,
वो डाली जिसपर झूल जाती थी तुम,
शहतूत की वो छाया जहाॅ घंटों बातें करती थी तुम,
वही दहकती यादें हथेली पर रखकर,
सुलगते हृदय की ज्वाला और सुलगा दी थी तुमने।

हाॅ, कई वर्षों बाद मिले थे तुम उसी शहतूत के तले....