क्यूँ कोई झाँके, किसी के सूनेपन तक!
बेवजह दे, कोई क्यूँ दस्तक!
महज, मिटाने को, अपनी उत्सुकता,
जगाने को, मेरी सोई सी उत्कंठा,
देने को, महज, एक दस्तक,
तुम ही आए होगे, मेरे दर तक!
महज झांकने, सूनेपन तक....
वही पहचानी सी, आहट,
हल्की सी, पवन की सुग-बुगाहट,
सूखे पत्तों की, सर-सराहट,
काफी थे, कहने को!
तुम जो कहते,
वो, कह आए थे, चुपके से मुझको,
मन की बातें, इस मन तक!
देने को, महज एक दस्तक.....
अन्जान थे, हमेशा तुम,
सोया ही कब, उत्सुक ये मेरा मन,
हर पल, धारे इक उत्कंठा,
कहने भर, चुप जरा,
पर ओ बेखबर,
तीर पर, उठती ये पल-पल लहर,
सिमटती है, मेरे दर तक!
गूंजती है, दरो-दीवार तक......
हक है तुम्हें, तुम मिटाओ उत्सुकता,
न जगाओ मगर, यूँ मेरी उत्कंठा,
यूँ न दो, महज एक दस्तक,
ठहर जाओ, जरा मेरे दर तक!
या यूँ न झाँको, किसी के सूनेपन तक!
बेवजह दो न तुम यूँ दस्तक!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
हक है तुम्हें, तुम मिटाओ उत्सुकता,
ReplyDeleteन जगाओ मगर, यूँ मेरी उत्कंठा,
यूँ न दो, महज एक दस्तक,
ठहर जाओ, जरा मेरे दर तक....वाह क्या लिखते हैं आप बहुत ही सुंदर रचना बधाई हो आपको आदरणीय
शुक्रिया आदरणीया, बहुत-बहुत धन्यवाद ।।।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-03-2021) को "रंगभरी एकादशी की हार्दिक शुफकामनाएँ" (चर्चा अंक 4015) पर भी होगी।
ReplyDelete--
मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आभार आदरणीय। ।।।
Deleteसोई उत्सुकता स्वयं प्रतीक्षारत रहती है उस दस्तक के लिए ताकि सूनापन न पसरे । अति सुन्दर कथ्य एवं शिल्प ।
ReplyDeleteविनम्र आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया
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ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 24 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
विनम्र आभार आदरणीया। ।।।
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteविनम्र आभार,आदरणीया ....
Deleteमन के सूनेपन की अवस्था का सजीव चित्रण किया है ... किसी की दी हुई दस्तक भी मन में कितने संशय पैदा कर देती है मन में उठती पीड़ा की लहर का वेग दिख रहा है । भावों का सुंदर चित्रण ।
ReplyDeleteविनम्र आभार,आदरणीया ....
Deleteभावपूर्ण सृजन आदरणीय सर।
ReplyDeleteसदर।
विनम्र आभार,आदरणीया ....
Deleteया यूँ न झाँको, किसी के सूनेपन तक!
ReplyDeleteबेवजह दो न तुम यूँ दस्तक!
सुंदर अभिव्यक्ति!--ब्रजेंद्रनाथ
विनम्र आभार,आदरणीय महोदय। ।।।
Deleteयूँ न दो, महज एक दस्तक,
ReplyDeleteठहर जाओ, जरा मेरे दर तक!
वाह !! अति सुंदर भावाभिव्यक्ति ,सादर नमन आपको
विनम्र आभार,आदरणीया कामिनी जी।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
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