Thursday, 10 November 2016

अतीत हूँ मैं

अतीत हूँ मैं बस इक तेरा, हूँ कोई वर्तमान नहीं...
तुमको याद रहूँ भी तो मैं कैसे,
मेरी चाहत का तुझको, है कोई गुमान नहीं,
झकझोरेंगी मेरी बातें तुम्हें कैसे,
बातें ही थी वो, आकर्षण का कोई सामान नहीं।

मेरी आँखों के मोती बन-बनकर टूटे हैं सभी,
सच कहता हूँ उन सपनों में था मुझको विश्वास कभी,
सजल नयन हुए थे तेरे, देखकर पागलपन मेरा,
अब हँसता हूँ मैं यह कहकर "लो टूट चुका बन्धन मेरा!"
अतीत के वो क्षण, अब मुझको हैं याद नहीं।

क्या जानो तुम कि एक विवशता से है प्रेरित...
जीवन सबका, जीवन मेरा और तेरा !
पर यह विवशता कब तक रौंदेगी जीवन को भी,
हो जाएंगे आँखों से ओझल जीवन के ये पृष्ठ सभी,
नव-यौवन की ये हलचल, हो जाएंगी खाक यहीं।

अपनाने में तुमको मैंने अपनेपन की परवाह न की,
पर क्रंदन सुनकर भी मेरी, तूने इक आह न की,
आह मेरे अब उभरे हैं बनकर गीत,
पर दुनिया मेरे गीतों में अपनापन पाए भी तो क्या?
बोल मेरे उन गीतों के, रह जाने हैं बस यहीं।

अतीत हूँ मैं बस इक तेरा, हूँ कोई वर्तमान नहीं.....

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