सामने, मेरे खड़ा,
होता है, हर पल, एक लम्हा मेरा,
खाली या भरा!
वो बहती, सी धारा,
डगमगाए, चंचल सी पतवार सा,
आए कभी, वो सामने,
बाँहें, मेरी थामने,
कभी, मुझको झुलाए,
उसी, मझधार में,
बहा ले जाए, कहीं, एक लम्हा मेरा,
खाली या भरा!
कितना, करीब वो,
है दूर उतना, बड़ा ही, अजीब वो,
न, बाहों में, वो समाए,
न, हाथों में आए,
रहे, यादों में ढ़लकर,
इसी, अवधार में,
कहाँ ले जाए, वही, एक लम्हा मेरा,
खाली या भरा!
लम्हे, कल जो भूले,
ना वो फिर मिले, कहीं फिर गले,
कभी, वो अपना बनाए,
कभी, वो भुलाए,
करे, विस्मित ये लम्हे,
इसी, दोधार में,
भूला है, हर पल, एक लम्हा मेरा,
खाली या भरा!
सामने, मेरे खड़ा,
होता है, हर पल, एक लम्हा मेरा,
खाली या भरा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 31
ReplyDeleteजनवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया दी।
Deleteखूबसूरत। लम्हा।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय जोशी जी।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (31-01-2020) को "ऐ जिंदगी तेरी हर बात से डर लगता है"(चर्चा अंक - 3597) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता लागुरी 'अनु '
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनु जी।
Deleteखूबसूरत लम्हे
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता जी।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनुराधा जी।
Deleteबहुत सुंदर एक लम्हा भी कैसे कैसे रंग दिखाता है जीवन के बहुत सुंदर सृजन आपका पुरुषोत्तम जी बधाई।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कुसुम जी।
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