Thursday, 15 April 2021

किस्सों में थोड़ा सा

उनकी किस्सों का, इक अंश हूँ अधूरा सा!
उन किस्सों में, अब भी हूँ थोड़ा सा!

मुकम्मल सा, इक पल,
उत्श्रृंखल सी, इठलाती इक नदी,
चंचल सी, बहती इक धारा,
ठहरा सा, इक किनारा!

सपनों में उनकी, अब भी हूँ थोड़ा सा!
इक अंश, अधूरा सा!

धारे के, वो दो किनारे,
भीगे से, जुदा-जुदा वो पल सारे,
अविरल, बहती सी वो नदी,
ठहरी-ठहरी, इक सदी!

सवालों में उनकी, अब भी हूँ थोड़ा सा!
इक अंश, अधूरा सा!

अधूरी सी, बात कोई,
जो तड़पा जाए, पूरी रात वही,
याद रहे, वो इक अनकही,
रह-रह, नैनों से बही!

ख्यालों में उनकी, अब भी हूँ थोड़ा सा!
इक अंश, अधूरा सा!

रुक-रुक, वो राह तके,
इस चाहत के, कहाँ पाँव थके!
उभर ही आऊँ, मैं यादों में,
जिक्र में, या बातों में!

उनकी किस्सों का, इक अंश हूँ अधूरा सा!
उन किस्सों में, अब भी हूँ थोड़ा सा!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

26 comments:

  1. लाजवाब, बहुत ही खूबसूरत रचना, बहुत बहुत बधाई हो

    ReplyDelete
  2. खूबसूरत रचना बधाई हो आपको आदरणीय 🌹

    ReplyDelete
  3. एक अंश थोडा सा हूँ , कुछ अधुरा सा हूँ ... बहुत खूबसूरती से मन के भावों को वर्णित किया .

    ReplyDelete
  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-०४-२०२१) को 'ज़िंदगी के मायने और है'(चर्चा अंक- ३९४०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।

    ReplyDelete

  5. अधूरी सी, बात कोई,
    जो तड़पा जाए, पूरी रात वही,
    याद रहे, वो इक अनकही,
    रह-रह, नैनों से बही!..बहुत सुंदर भावों भरी रचना ।

    ReplyDelete
  6. वाह! बहुत सुंदर प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  7. रुक-रुक, वो राह तके,
    इस चाहत के, कहाँ पाँव थके!
    उभर ही आऊँ, मैं यादों में,
    जिक्र में, या बातों में!

    उनके किस्सों का, इक अंश हूँ अधूरा सा!
    उन किस्सों में, अब भी हूँ थोड़ा सा!
    अविस्मरणीय, भावभीनी पंक्तियाँ। बहुत सुंदर रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया मीना जी।।।। आभार। ।।

      Delete
  8. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना लेखनी को नमन

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अभिलाषा जी।।।। आभार। ।।

      Delete
  9. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया उषा किरण जी।।।। आभार। ।।

      Delete
  10. उनकी किस्सों का, इक अंश हूँ अधूरा सा!
    उन किस्सों में, अब भी हूँ थोड़ा सा!

    क्या बात है !!बहुत खूब... सादर नमन आपको

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कामिनी जी।।।। आभार। ।।

      Delete
  11. सवालों में उनकी, अब भी हूँ थोड़ा सा!
    इक अंश, अधूरा सा!
    मर्म को छूता सृजन, पुरुषोत्तम जी।
    अप्रतिम।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कुसुम जी

      Delete
  12. वाह्ह्ह्ह्ह्ह!बेहद सराहनीय,बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ सर। कमाल की है आपकी लेखनी की धार।
    सादर प्रणाम 🙏

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया आँचल जी।

      Delete