पा लेने को, है उन्मुक्त गगन,
है छू लेने को, उम्मीदों के कितने घन!
खुला-खुला, उद्दीप्त ये आंगन,
बुलाता, ये सीमा-विहीन क्षितिज,
भर आलिंगन!
अभी तो, दो ही दिन, कट पाया जीवन!
जितना सौम्य, उतना सम्यक,
रहस्यमयी उतनी ही, यह दृष्टि-फलक!
धारे रूप कई, बदले रंग कई!
हर रूप अनोखा, हर रंग सुरमई,
और मनभावन!
अभी तो, दो ही दिन, कट पाया जीवन
पर अंजाना आने वाला क्षण!
ना जाने कौन सा पल, है कितना भारी!
किस पल, बढ़ जाए लाचारी!
ना जाने, ले आए, कौन सा पल,
अन्तिम क्षण!
अभी तो, दो ही दिन, कट पाया जीवन!
समेट लूँ, जो शेष है जीवन!
भर लूँ दामन में, कर लूँ इक आलिंगन!
कंपित हो, सुसुप्त धड़कन!
जागृत रहे, किसी की वेदना में,
ये हृदयांगण!
अभी तो, दो ही दिन, कट पाया जीवन!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteआदरणीया जोशी जी, बहुत-बहुत धन्यवाद व नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय शान्तनु जी। धन्यवाद।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(०४-०१-२०२१) को 'उम्मीद कायम है'(चर्चा अंक-३९३६ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
आभार आदरणीया अनीता जी
Deleteवाह, बहुत सुन्दर।🌻
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय माथुर जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteसुन्दर रचना।
ReplyDelete--
नूतन वर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आभारी हूँ आदरणीय मयंक जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteकहते हैं चार दिन की जिंदगी है, सो आधी गुजर गयी आधी ही शेष है...
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीया अनीता जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteबहुत सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीय शान्तनु जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteवाह! बहुत सुन्दर माननीय ।
ReplyDeleteसादर।
शुक्रिया आदरणीया सधु जी।।।।
Deleteजीवन की नश्वरता और शेष कामनाओं को उकेरती भावपूर्ण रचना पुरुषोत्तम जी |शायद हर इंसान यही सोचता है पर कह पाने में अक्षम है | हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteआदरणीया रेणु जी, आपकी प्रतिक्रिया मे भी विलक्षणता भरी होती है। जब भी आपकी प्रतिक्रिया पाता हूँ, गौरवान्वित हो उठता हूँ। शुभकामनाओं सहित अभिवादन व आभार।
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