मन को, ये कर जाते, वश में,
दामन में, ये कब आए,
वो आकर्षण,
मन-मानस में, बस जाते हैं!
दामन में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....
जैसे, कोई सम्मोहन, या कोई जादू,
दामन में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....
जैसे, कोई सम्मोहन, या कोई जादू,
मन को, करता जाए, बेकाबू,
छलक उठे, पैमानों में,
बूँदों के वो घन,
फिर भी, प्यास बढ़ा जाते हैं!
आँगन में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....
इक दर्द, टीस जरा, मुझे है हासिल,
पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....
इक दर्द, टीस जरा, मुझे है हासिल,
पीड़ वही, करती है, बोझिल,
यूँ, पथ में ही छूटे हम,
उन यादों में डूबे,
उन यादों में डूबे,
मुझसे दूर, मुझे ही ले जाते है!
पहलू में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....
पहलू में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
वाह!! सही बात!
ReplyDeleteफिर भी पथ के कुछ ऐसे होते आकर्षण,
करते आह्लादित मन के कण कण को हर क्षण।
विनम्र आभार आदरणीय विश्वमोहन जी
Deleteजय मां हाटेशवरी.......
ReplyDeleteआपने लिखा....
हमने पढ़ा......
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
दिनांक 01/06/2021 को.....
पांच लिंकों का आनंद पर.....
लिंक की जा रही है......
आप भी इस चर्चा में......
सादर आमंतरित है.....
धन्यवाद।
विनम्र आभार आदरणीय कुलदीप जी
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (1-6-21) को "वृक्ष"' (चर्चा अंक 4083) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
विनम्र आभार आदरणीया कामिनी जी।
Deleteइक दर्द, टीस जरा, मुझे है हासिल,
ReplyDeleteपीड़ वही, करती है, बोझिल,
यूँ, पथ में ही छूटे हम,
उन यादों में डूबे,
मुझसे दूर, मुझे ही ले जाते है.…बहुत सुंदर
विनम्र आभार आदरणीया शकुन्तला जी।
Deleteबहुत ही उम्दा लेखनी।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय संदीप जी
Deleteबहुत सुंदर भावों का सृजन ।
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीया जिज्ञासा जी।
Deleteवाह, बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय गजेन्द्र भट्ट "हृदयेश" महोदय।।।।।
Deleteबेहतरीन🌻
ReplyDeleteविनम्र आभार आदरणीय शिवम जी
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