Monday, 31 May 2021

पथ के आकर्षण

पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....

चलते-चलते, इक संग, इक पथ में,
मन को, ये कर जाते, वश में,
दामन में, ये कब आए,
वो आकर्षण, 
मन-मानस में, बस जाते हैं!

दामन में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....

जैसे, कोई सम्मोहन, या कोई जादू,
मन को, करता जाए, बेकाबू,
छलक उठे, पैमानों में,
बूँदों के वो घन,
फिर भी, प्यास बढ़ा जाते हैं!

आँगन में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....

इक दर्द, टीस जरा, मुझे है हासिल,
पीड़ वही, करती है, बोझिल,
यूँ, पथ में ही छूटे हम,
उन यादों में डूबे,
मुझसे दूर, मुझे ही ले जाते है!

पहलू में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

16 comments:

  1. वाह!! सही बात!
    फिर भी पथ के कुछ ऐसे होते आकर्षण,
    करते आह्लादित मन के कण कण को हर क्षण।

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    1. विनम्र आभार आदरणीय विश्वमोहन जी

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  2. जय मां हाटेशवरी.......
    आपने लिखा....
    हमने पढ़ा......
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
    दिनांक 01/06/2021 को.....
    पांच लिंकों का आनंद पर.....
    लिंक की जा रही है......
    आप भी इस चर्चा में......
    सादर आमंतरित है.....
    धन्यवाद।

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (1-6-21) को "वृक्ष"' (चर्चा अंक 4083) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा


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  4. इक दर्द, टीस जरा, मुझे है हासिल,
    पीड़ वही, करती है, बोझिल,
    यूँ, पथ में ही छूटे हम,
    उन यादों में डूबे,
    मुझसे दूर, मुझे ही ले जाते है.…बहुत सुंदर

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    1. विनम्र आभार आदरणीया शकुन्तला जी।

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  5. बहुत ही उम्दा लेखनी।

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  6. बहुत सुंदर भावों का सृजन ।

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    1. विनम्र आभार आदरणीया जिज्ञासा जी।

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  7. Replies
    1. विनम्र आभार आदरणीय गजेन्द्र भट्ट "हृदयेश" महोदय।।।।।

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