समेट लूँ, उनका ख्याल कैसे....
समेट ले, कोई कैसे समुन्दर,
रोक लें कैसे, आती-जाती सी चंचल लहर,
दग्ध सा, मैं इक विरान किनारा,
उन्हीं लहरों से हारा!
समेट लूँ, उनका ख्याल कैसे....
यूँ तो रहे संग, सदियों मगर,
ज्यूँ, झौंके पवन के, बस गुजरते हों छूकर,
थका, मुग्ध सा, मैं तन्हा बंजारा,
उन्ही, झौकों से हारा!
समेट लूँ, उनका ख्याल कैसे....
अनगिनत, सितारे गगन पर,
चल दिए चाँद संग, इक सुनहरे सफर पर,
तकूँ, दुग्ध सा, मैं छलका नजारा,
उन्हीं नजारों से हारा!
समेट लूँ, उनका ख्याल कैसे....
कोई कैसे, समेट ले ये सफर,
गुजरती है, इक याद संग, जो इक उम्र भर,
स्निग्ध सा, मैं उस क्षण का मारा,
उन्हीं ख्यालों से हारा!
समेट लूँ, उनका ख्याल कैसे....
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
अनगिनत, सितारे गगन पर,
ReplyDeleteचल दिए चाँद संग, इक सुनहरे सफर पर,
तकूँ, दुग्ध सा, मैं छलका नजारा,
उन्हीं नजारों से हारा!
समेट लूँ, उनका ख्याल कैसे....वाह बहुत सुंदर रचना बधाई हो आपको आदरणीय
विनम्र आभार आदरणीया
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 14 मई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार
Deleteवाह।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteविनम्र आभार
Deleteजी बेहतरीन है।
ReplyDeleteशुक्रिया प्रकाश जी
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