भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!
कौन खोए, चैन अपना!
बिन बात देखे, दिन रात सपना,
फिर उसी से, ये मिन्नतें,
करे हजार!
भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!
बेवजह ही, ये ख़्वाहिशें!
हर पल, कोई ख्वाब ही, ये बुने,
कोई काँच से, ये महल,
टूटे हजार!
भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!
मिली हैं, कितनी ठोकरें!
यूँ किसी, शतरंज की हों मोहरें,
जैसे चाल, वो चल गए,
कई हजार!
भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!
दूँ भी तो, फिर क्यूँ भला!
ये उधार, वापस ही कब मिला!
बिखर न जाएँ, धड़कनें,
मेरे हजार!
भले ही, बेकार....
पर न, ये दिल, किसी को दूंगा उधार!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
अरे वाह !
ReplyDeleteबिल्कुल मत दीजिएगा किसी को दिल उधार !!!
एक सरल, सच्ची, निश्छल अभिव्यक्ति। बहुत पसंद आई।
सुंदर सी इस प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीया। ।।
Deleteबहुत बहुत बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteसुंदर सी इस प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीया
Deleteशानदार🌻
ReplyDeleteसुंदर सी इस प्रेरक प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीय
Deleteदिल उधार भी दिया जाता क्या ? अगर उधार देने पर ये सब होता है तो दिल देने पर तो न जाने क्या क्या होगा ।
ReplyDeleteचलिए आप तो मस्त रहिए ।
अच्छी रस्तुति
सुंदर सी इस प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीया
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-05-2021को चर्चा – 4,064 में दिया गया है।
ReplyDeleteआपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क
आभार
Deleteबहुत खूब ... ये दिल न दूंगा उधार ...
ReplyDeleteदिल है कोई फालतू शै नहीं जो हर किसी को उधारी देते रहो ... अच्छी रचना है ...
सुंदर सी इस प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीय नसवा साहब
Deleteदिल के लेन-देन में बस दर्द ही तो मिलता है । चाहे प्रेम में दो या उधारी । न दो तो भी रहा नहीं जाता है । अति सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteसुंदर सी इस प्रतिक्रिया हेतु आभार आदरणीया
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआभार आदरणीया
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