Showing posts with label अपरुष. Show all posts
Showing posts with label अपरुष. Show all posts

Sunday, 24 December 2017

अपरुष पुरुष

अपरुष हैं जो, सर्वथा है पुरुषत्व वही,
है पुरुष वही, है पुरुषोत्तम वही....

कदापि! वो पुरुष नही, वो पुरुषत्व नहीं, जो........

निर्बल अबला का संघार करे,
बाहु पर, दंभ हजार भरे,
परुष बने, निर्मम अत्याचार करे,
सत्तासुख ले, व्यभिचार करे,
निज अवगुण ढ़ोए, दुराचार करे.....

कदापि! है वो पुरुषत्व नहीं,
वो पुरुष नहीं, वो पुरुषोत्तम नहीं....

अपरुष हैं जो, सर्वथा है पुरुषत्व वही,
है पुरुष वही, है पुरुषोत्तम वही....

सहनशील, सौम्य, काम्य, अपरुष,
मृदु, कोमल, क्रोध-रहित, बेवजह खुश,
है उत्तम वही, वही है पुरुष.....

साहस की वो निष्काम प्रतिमूर्ति,
सत्य के संघर्ष में दे देते हैं जो आहूति,
है नीलकंठ वो, वही है पुरुष....

सुशील, नम्र, स्त्रियोचित्त आचरण,
विपदा घड़ी बनते जो नारी के आवरण,
हैं पुरुषोत्तम वो, वही है पुरुष.....

धीर, गंभीर, स्थिर-चित्त, अपरुष,
मृदुल, उत्कंठ, काम-रहित, निष्कलुष,
है नरोत्तम वही, वही है नहुष.....

अपरुष हैं जो, सर्वथा है पुरुषत्व वही,
है पुरुष वही, है पुरुषोत्तम वही....
-------------------------------------------------
अपरुष
1. जिसमें परुषता या कठोरता न हो; सहृद्य 2. कोमलमृदुल 3. क्रोध-रहित।