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Saturday, 11 September 2021

टीस

आसान कहाँ, भावों को अभिव्यक्ति देना...
यूँ, मूक मनोभावों को, सुन लेना!

अर्थहीन सभी लगते, यूँ, चेहरे सारे,
टिमटिम से, नैनों के दो तारे,
अपलक, जाने किसकी, राह निहारे!

यूँ, अन्तः सौ-सौ अन्तर्द्वन्द्व संभाले,
पग-पग, राहों नें द्वन्द डाले,
लगाए, चंचल से, एहसासों पे ताले!

घूंघट तले, कितने ही, सावन जले,
चुप-चुप, सारे अरमान पले,
वो अनकहे, बिन कहे, कोई सुन ले!

तड़पाए मन, भावों के आवागमन,
उलझाए, अन्तः अवलोकन,
लब कैसे दे, यूँ, शब्दों को थिरकन!

शिकन, यूँ चेहरों पे, भाव न गढ़ते,
नैनों में, यूँ न, बहाव उतरते,
टीस भरे, गहरे से ये घाव ना रहते!

आसान कहाँ, भावों को अभिव्यक्ति देना...
यूँ, मूक मनोभावों को, सुन लेना!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)