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Sunday, 13 May 2018

समग्रता की तलाश

समग्रता की तलाश में, व्यग्र यहाँ हर कोई,
भटक रहा है मन, एकाग्रता है खोई......

बस पा लेने को दो जून की रोटी,
कोई जप रहा है कहीं राम-नाम,
कोई बस बेचता है यूं ईश्वर की मूर्ति,
कोई धर्म को बेचते हैं सरेआम,
दिलों में धर्मांधता की सेंकते है रोटी!

कोई मंदिर में हरदिन माथा टिकाए,
कर्म से विमुख, दूर साधना से,
तलाशता है वहाँ, कोई मन की शांति,
धोए है तन को डुबकी लगाकर,
मन के मैल मन में ही रखकर छुपाए!

भौतिक सुखों की झूठी लालसा में,
नैतिकता से है हरपल विमुख,
अग्रसर है बौद्धिक हनन की राह पर,
चारित्रिक पतन की मार्ग पर,
वो खोए है विलासिता की कामना में!

बदली हुई है समग्रता की परिभाषा,
निज-लाभ हेतु है ये एकाग्रता,
मन रमा है काम, क्रोध,मद,मोह में,
समग्र व्यसन के ऊहापोह में,
व्यग्र हुई काम-वासना की पिपाषा!

समग्रता की तलाश में, व्यग्र यहाँ हर कोई,
भटक रहा है मन, एकाग्रता है खोई......