Showing posts with label कर. Show all posts
Showing posts with label कर. Show all posts

Sunday, 21 October 2018

गठबंधन

नाजुक डोर से इक,
दो हृदय, आज जुड़ से गए...

बंध बंधते रहे,
तार मन के जुड़ते रहे,
डबडबाए नैन,
बांध तोड़ बहते रहे,
चुप थे दो लब,
चुपके से कुछ कह गए,
गांठ रिश्तों के,
इक नए से जुड़ गए....

नाजुक डोर से इक,
दो हृदय, आज जुड़ से गए...

खिल सी उठी,
मुरझाई सी इक कली,
आशाएं कई,
इक साथ पल्लवित हुई,
बांधने मन के,
इक नवीन बंधन वो चली,
नाम रिश्तों के,
इक नए से मिल गए.....

नाजुक डोर से इक,
दो हृदय, आज जुड़ से गए...

मुक्त आकाश ये,
छूने लगा मुदित हृदय,
बेसुरा कंठ भी,
गाने लगा नवीन लय,
मुखरित राह पर,
राही नए दो चल पड़े,
राह रिश्तों के,
इक नए से मिल गए.....

नाजुक डोर से इक,
दो हृदय, आज जुड़ से गए...

कोटि-कोटि कर,
आशीष देने को उठे,
कितने ही स्वर,
शंख नाद करने लगे,
ये सैकड़ों भ्रमर,
डाल पर मंडराने लगे,
डाल रिश्तों के,
इक नए से मिल गए.....

नाजुक डोर से इक,
दो हृदय, आज जुड़ से गए...