Showing posts with label जिन्दगीं. Show all posts
Showing posts with label जिन्दगीं. Show all posts

Saturday, 14 August 2021

गुनाह

ऐ जिन्दगी! तू कोई गुनाह तो नहीं,
पर, लगे क्यूँ, किए जा रहा मैं,
गुनाह कोई,
और गुनाह कितने, 
करवाएगी, ऐ जिन्दगी!

कौन सी ख्वाहिश के, पर दूँ कतर,
कैसे फेर लूँ, किसी की, उम्मीदों से नजर,
कर्ज एहसानों के, लिए यूँ उम्र भर,
तेरी ही गलियों से, रहा हूँ गुजर,
बाकि रह गई, राह कितनी, जिन्दगीं!

और गुनाह कितने, 
करवाएगी ऐ जिन्दगी!

शक भरी निगाहों से, तू देखती है,
दलदल में, गुनाहों के, तू ही धकेलती है,
सच भी कहूँ, तू झूठ ही तोलती है,
उस शून्य में, झांकती है नजर,
खाली है आकाश कितनी, जिन्दगीं!

और गुनाह कितने, 
करवाएगी ऐ जिन्दगी!

रिश्ते बिक गए, तेरी ही बाजार में,
फलक संग, रस्ते बँट गए इस संसार में,
बाकि रह गया क्या, अधिकार में,
टीस बन कर, आते हैं उभर,
गुनाहों के विस्तार कितने, जिन्दगी!

ऐ जिन्दगी! तू कोई गुनाह तो नहीं,
पर, लगे क्यूँ, किए जा रहा मैं,
गुनाह कोई,
और गुनाह कितने, 
करवाएगी, ऐ जिन्दगी!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)