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Tuesday, 29 June 2021

रुबरू वो

जैसे, ठहरा हुआ, इक आईना था मैं,
बेझिझक, हुए थे रूबरू वो!

थाम कर अपने कदम, रुक चला यूँ वक्त,
पहर बीते, उनको ही निहार कर,
लगा, बहते पलों में, समाया एक छल हो,
ज्यूँ, नदी में ठहरा हुआ जल हो,
यूँ हुए थे, रूबरू वो!

जैसे, ठहरा हुआ, इक आईना था मैं,
बेझिझक, हुए थे रूबरू वो!

शायद, भूले से, कोई लम्हा आ रुका हो,
या, वो वक्त, थोड़ा सा, थका हो,
देखकर, इक सुस्त बादल, आ छुपा हो,
बूँद कोई, तनिक प्यासा सा हो,
रुबरू, यूँ हुए थे वो!

जैसे, ठहरा हुआ, इक आईना था मैं,
बेझिझक, हुए थे रूबरू वो!

पवन झकोरों पर, कर लूँ, यकीन कैसे!
रुक जाए किस पल, जाने कैसे,
मुड़ जाएँ, बिखेर कर, कब मेरी जुल्फें,
बहा लिए जाए, दीवाना सा वो,
बेझिझक, रुबरू हो!

जैसे, ठहरा हुआ, इक आईना था मैं,
बेझिझक, हुए थे रूबरू वो!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
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- Dedicated to someone to whom I ADMIRE & I met today and collected Sweet Memories & Amazing Fragrance...
It's ME, to whom I met Today...

Monday, 18 July 2016

ओ मेरे साजन

फुहारें रिमझिम की लेकर आई फिर साजन की यादें..........

घटाओं ने आँचल को बिखेरे हैं यूँ झूम-झूमकर,
बिखरी हैं बूंदें सावन की तन पर टूट-टूटकर,
वो कहते हैं इसको, है यह सावन की पहली फुहार,
मन कहता है, साजन ने फिर आज बरसाया हैं मुझ पर प्यार।

साजन मेरा साँवला सा, है सावन का वो संगी,
साथ-साथ रहते हैं दोनो, उन घटाओं के उपर ही,
वो कहते है, बावला है प्रियतम तेरा बरसाता है फुहार,
मन कहता है, दीवाना है साजन मेरा करता वो मुझसे गुहार।

ओ काले बादल जाकर मेरे साजन से तुम ये कहना,
छुप-छुपकर बूँदों से मेरे तन को ना सहलाए,
कोरा आँचल भींगा-भीगा सा पहना है मैंने भी तन पर,
लहरा दे इनको भी प्यार से, छलका दे ऱिमझिम सी फुहार।

ओ मेरे नटखट साँवले से मधुप्रिय साजन,
तुम झिटको फिर से घटाओं का ये भींगा सा आँचल,
पड़ने तो फुहार ऱिमझिम की तन पर टूट-टूटकर,
भीगे ये काया, भीगे ये मन, भीग जाए मेरे आँगन की बहार।

Wednesday, 4 May 2016

मादक सुबह

मादक सुबह फिर नींद से जागी, क्या कहने हैं!

फूल खिले हैं अब डाली-डाली,
हर क्यारी पर छाई है कैसी हरियाली,
वहाँ दूर पेड़ो पर गा रही कोयल मतवाली,
मनभावन रंगो में निखरी है सूरज की लाली!

चटक रंग कलियों के आ निखरे हैं,
बाग की कलियों पर भँवरो के ही डेरे हैं,
कहीं दूर उन पपीहों नें भी मस्त गीत छेड़े हैं,
मनमोहक कितनी यह छटा, मन हरने वाली है!

ऐ सुबह, तू बिल्कुल दीवाना सा है,
रोज ही तू खिड़की से झांकने आता है,
गीत कोई मधुर कानों मे तू फिर घोलता है,
प्यार लुटाकर जीवन में, साँझ ढ़ले लौट जाता है!

ऐ सुबह, तू जल्दी सो जा, कल तुम्हें फिर से आना है!

Sunday, 27 December 2015

पूछे जो कोई तुमसे

पूछे जो कोई तुमसे कौन हूँ मैं?
तुम कह देना,

एक बेगाना पागल दीवाना, 
जो अनकही बातें कई कह जाता है..!

एक धुंधला चेहरा,
 जो यादों में बस रह जाता है...!!

एक बेगाना अन्जाना,
जो जीवन दर्शन दे जाता है...!!

एक जाना पहचाना,
जो कभी-कभी बात पते की कह जाता है...!!

यूँ तो उसके होने, या फिर, 
ना होने से,
कुछ फर्क नही पड़ता जीवन पर..!!!

पूछे जो कोई तुमसे, तुम कह देना!!!!
पर क्या अपने दिल से 
तुम यही कह सकोगी??????
शायद नही........!!! कभी नही.......!!!