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Wednesday, 4 May 2016

मादक सुबह

मादक सुबह फिर नींद से जागी, क्या कहने हैं!

फूल खिले हैं अब डाली-डाली,
हर क्यारी पर छाई है कैसी हरियाली,
वहाँ दूर पेड़ो पर गा रही कोयल मतवाली,
मनभावन रंगो में निखरी है सूरज की लाली!

चटक रंग कलियों के आ निखरे हैं,
बाग की कलियों पर भँवरो के ही डेरे हैं,
कहीं दूर उन पपीहों नें भी मस्त गीत छेड़े हैं,
मनमोहक कितनी यह छटा, मन हरने वाली है!

ऐ सुबह, तू बिल्कुल दीवाना सा है,
रोज ही तू खिड़की से झांकने आता है,
गीत कोई मधुर कानों मे तू फिर घोलता है,
प्यार लुटाकर जीवन में, साँझ ढ़ले लौट जाता है!

ऐ सुबह, तू जल्दी सो जा, कल तुम्हें फिर से आना है!