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Wednesday, 11 May 2016

वादों का क्या

वादों का क्या है, कल फिर नया इक कर लेंगे वादा!

जुबाने वादा अगर कर बैठे हैं तो क्या,
लिख कर कोई कागज तो हमने न दिया,
खता है ये उसकी एतबार जिसने किया,
वादा है ये फखत्, इन वादों का क्या?

वादा ही था, कल नया फिर कर लेगे हम इक वादा!

वो और थे जो वादो पे हो जातेे थे फना,
उम्र गुजरी थी जब, वादों की लगती थी हिना,
बंदिशें उन वादों की, जीना भी क्या उनके बिना,
वो एतबार क्या, जब उन वादो पे ना जिया?

वादा ही है वो जिसमे डूबे है दिल, डूबा ये सारा जहाँ!

दिल पिघल जाते है बस वादों की धूप में,
मर्म लेती है जन्म उन वादों की रूप में,
एहसास लहलहाते है उन वादों के स्वरूप में,
वादा तो है वो, सांसो की धागों से है जो सीया?

वादों का क्या, अब कौन निभाता है करके वादे यहाँ?