निष्क्रिय से हैैं, आकर्षण,
विलक्षणताओं से भरे वो क्षण,
गुम हैं कहीं!
सहज हों कैसे, विकर्षण के ये क्षण!
ये दिल, मानता नहीं,
कि, हो चले हैं, वो अजनबी,
वही है, दूरियाँ,
बस, प्रभावी से हैं फासले!
यूँ ही, हो चले, तमाम वादे खोखले!
गुजरना था, किधर!
पर जाने किधर, हम थे चले,
वही है, रास्ते,
पर, मंजिलों से है फासले!
हर सांझ, बहक उठते थे, जो कदम,
बहके हैं, आज भी,
टूटे हैं प्यालों संग, साज भी,
वहीं है, सितारे,
बस, गगन से हैं फासले!
मध्य सितारों के, छुपे अरमान सारे,
उन बिन, बे-सहारे,
चल, अरमान सारे पाल लें,
सब तो हैं वहीं,
यूँ सताने लगे हैं फासले!
निष्क्रिय से हैैं, आकर्षण,
विलक्षणताओं से भरे वो क्षण,
गुम हैं कहीं!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
विलक्षणताओं से भरे वो क्षण,
गुम हैं कहीं!
सहज हों कैसे, विकर्षण के ये क्षण!
ये दिल, मानता नहीं,
कि, हो चले हैं, वो अजनबी,
वही है, दूरियाँ,
बस, प्रभावी से हैं फासले!
यूँ ही, हो चले, तमाम वादे खोखले!
गुजरना था, किधर!
पर जाने किधर, हम थे चले,
वही है, रास्ते,
पर, मंजिलों से है फासले!
हर सांझ, बहक उठते थे, जो कदम,
बहके हैं, आज भी,
टूटे हैं प्यालों संग, साज भी,
वहीं है, सितारे,
बस, गगन से हैं फासले!
मध्य सितारों के, छुपे अरमान सारे,
उन बिन, बे-सहारे,
चल, अरमान सारे पाल लें,
सब तो हैं वहीं,
यूँ सताने लगे हैं फासले!
निष्क्रिय से हैैं, आकर्षण,
विलक्षणताओं से भरे वो क्षण,
गुम हैं कहीं!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)