निर्दयी बड़ी, सर्द सी ये पवन?
निर्मम, जाने न मर्म!
ढ़ँक लूँ, भला कैसे ये घायल सा तन!
ओढूं भला कैसे, कोई आवरण!
दिए बिन, निराकरण!
टटोले बिना, टूटा सा अंतः करण,
ले आए हो, ठिठुरण!
निर्मम, जाने न मर्म......
हो चले थे सर्द, पहले ही एहसास सारे!
चुभोती न थी, काँटों सी चुभन!
दुश्वार कितने, हैं क्षण!
जाने बिना, पल के सारे विकर्षण,
ले आए हो, ठिठुरण!
निर्मम, जाने न मर्म......
गर, सुन लेते मन की, तो आते न तुम!
दर्द में सिहरन, यूँ बढ़ाते न तुम!
दे गई पीड़, तेरी छुअन!
सर्द आहों में भर के, सारे ही गम,
ले आए हो, ठिठुरण!
निर्दयी बड़ी, सर्द सी ये पवन?
निर्मम, जाने न मर्म!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)