उतर आइए ना, फलक से जमीं पर,
यहाँ चाँदनी, कम है जरा!
कब से हैं बैठे, इन अंधेरों में हम,
छलकने लगे, अब तो गम के ये शबनम,
जला दीजिए ना, दो नैनों के ये दिए,
यहाँ रौशनी, कम है जरा!
उतर आइए ना, फलक से जमीं पर,
यहाँ चाँदनी, कम है जरा!
इक भीड़ है, लेकिन तन्हा हैं हम,
बातें तो हैं, पर कहाँ उन बातों में मरहम,
शुरू कीजिए, फिर वो ही सिलसिले,
यहाँ बानगी, कम हैं जरा!
उतर आइए ना, फलक से जमीं पर,
यहाँ चाँदनी, कम है जरा!
नजदीकियों में, समाई हैं दूरियाँ,
पास रह कर भी कोई, दूर कितना यहाँ,
दूर कीजिए ना, दो दिलों की दूरियाँ,
यहाँ बन्दगी, कम हैं जरा!
उतर आइए ना, फलक से जमीं पर,
यहाँ चाँदनी, कम है जरा!
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