Monday, 21 June 2021

चाँदनी कम है जरा

उतर आइए ना, फलक से जमीं पर,
यहाँ चाँदनी, कम है जरा!

कब से हैं बैठे, इन अंधेरों में हम,
छलकने लगे, अब तो गम के ये शबनम,
जला दीजिए ना, दो नैनों के ये दिए,
यहाँ रौशनी, कम है जरा!

उतर आइए ना, फलक से जमीं पर,
यहाँ चाँदनी, कम है जरा!

इक भीड़ है, लेकिन तन्हा हैं हम,
बातें तो हैं, पर कहाँ उन बातों में मरहम,
शुरू कीजिए, फिर वो ही सिलसिले,
यहाँ बानगी, कम हैं जरा!

उतर आइए ना, फलक से जमीं पर,
यहाँ चाँदनी, कम है जरा!

नजदीकियों में, समाई हैं दूरियाँ,
पास रह कर भी कोई, दूर कितना यहाँ,
दूर कीजिए ना, दो दिलों की दूरियाँ, 
यहाँ बन्दगी, कम हैं जरा!

उतर आइए ना, फलक से जमीं पर,
यहाँ चाँदनी, कम है जरा!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

17 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 22 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल .मंगलवार (22 -6-21) को "योग हमारी सभ्यता, योग हमारी रीत"(चर्चा अंक- 4103) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. मनमोहक अनुभूतियों का सृजन ।

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  4. प्रेम पगी खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  5. नजदीकियों में, समाई हैं दूरियाँ,
    पास रह कर भी कोई, दूर कितना यहाँ,
    दूर कीजिए ना, दो दिलों की दूरियाँ,
    यहाँ बन्दगी, कम हैं जरा!---वाह पुरुषोत्तम जी।

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  6. इक भीड़ है, लेकिन तन्हा हैं हम,
    बातें तो हैं, पर कहाँ उन बातों में मरहम,
    शुरू कीजिए, फिर वो ही सिलसिले,
    यहाँ बानगी, कम हैं जरा!
    भीड़ में भी तन्हा है दिल...।
    पास आओ तो कम हो मुश्किल
    वाह!!!
    लाजवाब सृजन।

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  7. कब से हैं बैठे, इन अंधेरों में हम,
    छलकने लगे, अब तो गम के ये शबनम,
    जला दीजिए ना, दो नैनों के ये दिए,
    यहाँ रौशनी, कम है जरा!
    बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण पंक्तियां

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  8. इक भीड़ है, लेकिन तन्हा हैं हम,
    बातें तो हैं, पर कहाँ उन बातों में मरहम,
    शुरू कीजिए, फिर वो ही सिलसिले,
    यहाँ बानगी, कम हैं जरा!
    रूमानियत की सुंदर बानगी !

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    1. अभिनन्दन व विनम्र आभार आदरणीया रेणु जी।

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