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Wednesday, 1 September 2021

सुधि

भूले से, कभी सुधि लेने, आ जाओ तो,
अपनी सुध-बुध, ना खो देना!

निश्चित ठौर कहाँ, दरिया की मौजों का,
कोई गौर कहाँ, करता सहरा के कण का,
बहना है, या हवाओं संग बिखरना है,
ठहरे साहिल से, बस कहना है...

भूले से, कभी सुधि लेने, आ जाओ तो,
अपनी सुध-बुध, ना खो देना!

गर देखोगे मुखरा, पाओगे बिखरा सा,
उजाड़ सा, ये सहरा, पाओगे निखरा सा,
फूलों को, इन काँटों पर, खिलना है,
बागों के झूलों से, बस कहना है...

भूले से, कभी सुधि लेने, आ जाओ तो,
अपनी सुध-बुध, ना खो देना!

अंतर है इतना ही, तुझमें और मुझमें,
पग-पग तू ढ़ूंढ़े मुझको, मैं रमता तुझमें, 
ढ़ल कर तुझमें ही, मुझको रहना है,
बिन टोके तुझको, ये कहना है...

भूले से, कभी सुधि लेने, आ जाओ तो,
अपनी सुध-बुध, ना खो देना!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)