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Wednesday, 10 May 2017

मोहब्बत

शब्दों की शक्ल में ढलती रही, इक तस्वीर सी वो!

युँ ही कुछ लिखने लगा था मैं,
शब्दों से कुछ भाव मन के बुनने लगा था मैं,
दूर...खुद से कहीं दूर होने लगा था मैं,
फिर याद नहीं, ये क्या लिखने लगा था मै?

तस्वीर से निकल दबे पाँव, तावीर में ढली सी वो!

युँ ही कुछ कहने लगी थी वो,
जरा सा भाव उस मन के सुनने लगा था मैं,
न जाने क्युँ कुछ खोने सा लगा था मैं,
फिर याद नहीं, ये क्या लिखने लगा था मै?

शायद शब्दों से निकल, किसी बुत में ढली सी वो!

युँ ही अब कुछ करीब थी वो,
महसूस बुत की धड़कनें करने लगा था मैं,
शायद अब मोहब्बत करने लगा था मैं,
फिर याद नहीं, ये क्या लिखने लगा था मै?

शब्दों की स्पंदनो में ढलती रही, इक तावीर सी वो!

Sunday, 10 April 2016

मोहब्बत चीज क्या?

ये मोहब्बत है या ये नशा है कोई?
पल दो पल तो इस जाम में डूबे है सभी,
है चीज क्या ये मोहब्बत सिखा दे कोई?
क्युँ बिखरे है प्यार में दिल ये बता दे कोई?

क्युँ गुनगुनाता है भँवरा कलियों पे कहीं?
क्युँ खिल जाती है कलियाँ बाग में फिर वहीं?
क्युँ जान देते है पतंगे उन दियों पे कहीं?
क्युँ मरते हैं प्यार मे जवाँ दिल ये बता दे कोई?

उधर शाख पर पत्तियाँ लहलहाती हैं क्युँ?
उन कटीली टहनियों पर फूल मुस्कुराती है क्युँ?
धूप की ओर सुरजमुखी घूम जाती है क्युँ?
क्युँ जल उठते है दिए प्यार में ये बता दे कोई?

ये मोहब्बत है या ये नशा, ये मुझको बता दे कोई?