निशा स्तब्ध सी है आज फिर कैसी,
क्या फिर कोई मन प्रतीक्षा में बिखरा है यहाँ?
रजनी रो पड़ी है ज्यूँ ओस की बूँदों मे,
निमंत्रण यह कैसा अब इस सुनसान निशा में,
क्या फिर कोई मन पुकार रहा प्रतीक्षा में यहाँ?
तम सी सुरम्य काया खोई विरान निशा में,
रजनीगंधा भी भूली है खुश्बु इस स्तब्ध निशा में,
ये पल प्रतीक्षा के क्या हो चले हैं दुष्कर वहाँ?
मन कहता है जाकर देखूँ कैसी है यह निशा,
प्रतीक्षा के बोझिल पल वो खुद कैसे है गुजारता?
क्युँ कोई पढ़ नहीं पाता प्रतिक्षित मन की दुर्दशा?
प्रतीक्षा में बीतेगी कैसे यह निस्तब्ध सी निशा?
जा कह दे उस बैरी से कोई सूख चुकी रजनीगंधा,
छलक रहे नीर नयनों में पलक्षिण दुष्कर यहाँ!
निशा स्तब्ध सी है आज फिर कैसी,
क्या फिर कोई मन प्रतीक्षा में बिखरा है यहाँ?
क्या फिर कोई मन प्रतीक्षा में बिखरा है यहाँ?
रजनी रो पड़ी है ज्यूँ ओस की बूँदों मे,
निमंत्रण यह कैसा अब इस सुनसान निशा में,
क्या फिर कोई मन पुकार रहा प्रतीक्षा में यहाँ?
तम सी सुरम्य काया खोई विरान निशा में,
रजनीगंधा भी भूली है खुश्बु इस स्तब्ध निशा में,
ये पल प्रतीक्षा के क्या हो चले हैं दुष्कर वहाँ?
मन कहता है जाकर देखूँ कैसी है यह निशा,
प्रतीक्षा के बोझिल पल वो खुद कैसे है गुजारता?
क्युँ कोई पढ़ नहीं पाता प्रतिक्षित मन की दुर्दशा?
प्रतीक्षा में बीतेगी कैसे यह निस्तब्ध सी निशा?
जा कह दे उस बैरी से कोई सूख चुकी रजनीगंधा,
छलक रहे नीर नयनों में पलक्षिण दुष्कर यहाँ!
निशा स्तब्ध सी है आज फिर कैसी,
क्या फिर कोई मन प्रतीक्षा में बिखरा है यहाँ?