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Sunday, 21 May 2023

शाख


उम्मीदों-नाउम्मीदों के, साए तले,
बह चली इक सदी....

पतझड़ों के मध्य, पाले उम्मीदें कई,
चुप थी, कोई शाख,
उन रास्तों पे,
बह रही थी, जिधर इक सदी....

मध्य कहीं, सपनों सी, बहती बयार,
ले आई इक बहार,
वो भी झूमी,
झूम रही थी, जिधर इक सदी....

उड़ चले, कहीं, सपने बनकर राख,
बिखरे वे पात-पात,
कैसी ये वात,
बहा ले चली, जिधर इक सदी....

छूटी कब आशा, अरमान जरा सा,
इक उम्मीद हरा सा,
मन भरा सा,
देखे उधर ही, जिधर इक सदी....

पलट ही आएंगी, गुजरती सदियां,
खिल आएंगे, पलाश,
इक नवहास,
नवआस उधर, जिधर इक सदी....

उम्मीदों-नाउम्मीदों के, साए तले,
बह चली इक सदी....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)