प्रिय, बस कुछ और नहीं, प्रिय, और नहीं कुछ चाह !
चाहूँ बस इतना सा,
ले लूँ मैं हाथों में हाथ,
अंतहीन सी दुर्गम राहों पर,
पा जाऊँ मै तेरा साथ।
प्रिय, बस कुछ और नहीं, प्रिय, और नहीं कुछ चाह !
चुन लूँ राहों के वो काँटें,
चुभते हैं पग में जो चुपचाप,
घर के कोने कोने मे मेरे,
तेरी कदमों के हो छाप।
प्रिय, बस कुछ और नहीं, प्रिय, और नहीं कुछ चाह !
रख दो शानों पर मेरे,
तुम स्नेह भरे सर की सौगात,
भर लो आँखों मे सपने,
सजाऊँ मैं तेरे ख्वाब।
प्रिय, बस कुछ और नहीं, प्रिय, और नहीं कुछ चाह !
वादी हो इक फूलों की,
चंचल चितवन हो जिसमें तेरी,
झोंके पवन के बन आऊँ मैं,
खेलूँ मैं बस तेरे साथ।
प्रिय, बस कुछ और नहीं, प्रिय, और नहीं कुछ चाह !
चाह यही मेरी अनन्त,
तुम बनो इस जीवन का अन्त,
अंतहीन पल का हो अंत,
तेरी धड़कन के साथ।
प्रिय, बस कुछ और नहीं, प्रिय, और नहीं कुछ चाह !
चाहूँ बस इतना सा,
ले लूँ मैं हाथों में हाथ,
अंतहीन सी दुर्गम राहों पर,
पा जाऊँ मै तेरा साथ।
प्रिय, बस कुछ और नहीं, प्रिय, और नहीं कुछ चाह !
चुन लूँ राहों के वो काँटें,
चुभते हैं पग में जो चुपचाप,
घर के कोने कोने मे मेरे,
तेरी कदमों के हो छाप।
प्रिय, बस कुछ और नहीं, प्रिय, और नहीं कुछ चाह !
रख दो शानों पर मेरे,
तुम स्नेह भरे सर की सौगात,
भर लो आँखों मे सपने,
सजाऊँ मैं तेरे ख्वाब।
प्रिय, बस कुछ और नहीं, प्रिय, और नहीं कुछ चाह !
वादी हो इक फूलों की,
चंचल चितवन हो जिसमें तेरी,
झोंके पवन के बन आऊँ मैं,
खेलूँ मैं बस तेरे साथ।
प्रिय, बस कुछ और नहीं, प्रिय, और नहीं कुछ चाह !
चाह यही मेरी अनन्त,
तुम बनो इस जीवन का अन्त,
अंतहीन पल का हो अंत,
तेरी धड़कन के साथ।
प्रिय, बस कुछ और नहीं, प्रिय, और नहीं कुछ चाह !
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