Friday, 30 September 2016

कामनाएँ

अमुल्य मानव जन्म,
अनमोल रचना सृष्टि की,
पराकाष्ठा विवेक की,
अभिमान रचयिता के प्रकटीकरण की...

नन्हे कदमों से डग भरता,
अन्धी राहों पे चलता,
कोशिश में आकाश लांघने की,
भूला देता वजह खुद के इन्सान होने की...

कामनाओं से विवश,
ख्वाहिशों के वश में,
वासनाओं के ग्रास में,
खुद से पल पल दूर होता इन्सान....

आकांक्षाएं असीम,
इच्छाएँ नित अपरिमित,
अंतहीन अंधी सी चाहत,
रातोंरात सब हासिल कर लेने की जल्दी....

उद्वेलित अन्तःमन,
न पा सकने का भय,
कुछ छूट जाने का संशय,
आशंका सब छूटकर बिखर जाने की......

अवरुद्ध कल्पनाशीलता,
दम तोड़ती सृजनशीलता,
विवेकहीन सी हो चली मानसिकता,
वर्जनाओं में हर पल उलझता इन्सान.......

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