Sunday, 11 July 2021

प्रतीक्षा

युग बीता, न बीती इक प्रतीक्षा.....

निःसंकोच, अनवरत, बहा वक्त का दरिया,
पलों के दायरे, होते रहे विस्तृत!
समेटे इक आरजू, बांधे तेरी ही जुस्तजू,
रहूँ कब तक, मैं प्रतीक्षारत!

हो जाने दो, पलों को, कुछ और संकुचित,
ये विस्तार, क्यूँ हो और विस्तृत!
हो चुका आहत, बह चुका वक्त का रक्त,
रहूँ कब तक, मैं प्रतीक्षारत!

कब तक जिए, घायल सी, ये जिजीविषा!
वियावान सी, हो चली हर दिशा,
झांक कर गगन से, पूछता वो ध्रुव तारा,
रहूँ कब तक, मैं प्रतीक्षारत!

जलती रही आँच इक, सुलगती रही आग,
लकड़ियाँ जलीं, बन चली राख,
पड़ी हवनकुंड में, कह रही जिजीविषा,
रहूँ कब तक, मैं प्रतीक्षारत!

युग बीता, न बीती इक प्रतीक्षा.....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

28 comments:

  1. हो जाने दो, पलों को, कुछ और संकुचित,
    ये विस्तार, क्यूँ हो और विस्तृत!
    हो चुका आहत, बह चुका वक्त का रक्त,
    रहूँ कब तक, मैं प्रतीक्षारत...सुंदर

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 13 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलमंगलवार (13-7-21) को "प्रेम में डूबी स्त्री"(चर्चा अंक 4124) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  4. सुन्दर व्यंजना - प्रतीक्षा के क्षण ऐसे ही दूभर होते हैं.

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  5. प्रतीक्षा तो सृष्टि की सबसे खूबसूरत जीवट आशा हैं।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय सर।
    प्रणाम
    सादर।

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    1. विनम्र आभार आदरणीया। पुनः स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर।

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  6. हृदय को चीरकर भीतर चले गए आपके शब्द। अधिक क्या कहूं पुरुषोत्तम जी? अभिभूत हो गया हूं, नि:शब्द हो गया हूं।

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  7. प्रतीक्षा में ही मिलन का आनंद छुपा है

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  8. Waiting for Godot !
    हर किसी को किसी का इंतज़ार है.
    इंतज़ार में जीने को दिल बेकरार है !
    वाह !

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  9. अहा, सुन्दर भाव, सुन्दर शब्द।

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  10. सुंदर भाव । प्रतीक्षा के साथ उम्मीद जुड़ी होती है ।

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  11. विह्वल करती हुई कृति और विवशता की अनुभूति ....

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  12. हो जाने दो, पलों को, कुछ और संकुचित,
    ये विस्तार, क्यूँ हो और विस्तृत!
    हो चुका आहत, बह चुका वक्त का रक्त,
    रहूँ कब तक, मैं प्रतीक्षारत!
    बेहद सुंदर रचना

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  13. लम्बा इंतज़ार ... कई बार प्रतीक्षा पूर्ण नहीं होती, जीवन पूर्ण हो जाता है ...
    बहुत सुन्दर रचना ...

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  14. युग बीता, न बीती इक प्रतीक्षा....
    प्रतीक्षा किसी संवेदनशील इंसान के लिए सबसे दर्दनाक अनुभव है तो एस दर्द में आशा का एकमात्र आधार | विरह के पलों की सशक्त अभिव्यक्ति जो भावपूर्ण रचना के रूप में संजोयी गयी है | हार्दिक शुभकामनाएं|

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    1. अभिनन्दन व विनम्र आभार आदरणीया रेणु जी।

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